गुज़रा साल और तुम

 

तेरे आज और कल के दरमियान,
एक सदी गुज़र गयी एक साल मे.

खोल कर मुट्ठी झान्क कर देख,
पिघला दिल है किस हाल मे.

जिसकी याद मे ठोकरे खायी है,
खुद से खुद का हाल छुपाते,

रुक कर ,मुड के एक बार न देखा,
करके बेहाल गया,उस ख्याल ने।

कविता में प्रकाशित किया गया | 3 टिप्पणियां

नीम

चबाकर थूकी गयी इतनी बार कि महीन हो गयी हूँ।

बीमार की तीमारदारी करते-करते गमगीन हो गयी हूँ!

 

खून सुर्ख पाक किये इतने कि दागदार हो गया दामन।

थोड़ी- थोड़ी कड़वा हो रही हूँ, शायद नीम हो गयी हूँ !

 

(अब तुम कहोगे पलट के; नीम- हकीम खतरा-ए-जान !)

(जाग ऐ ज़मीर, अब तो कर ले अपनी असल पहचान !)

 

कविता में प्रकाशित किया गया | टिप्पणी करे

पश्याताप – एक लघु कथा : 1984 ka November

image courtsey picasa albums

पश्याताप – एक लघु कथा

आज :

आंसू थे की किसना की आँखों का दामन तजते नहीं थे ,और कैलासो तो जैसे बुत बन के ज़मीन में जड़ गयी थी . चार बेटो के बाद जन्मी लाडली बेटी सलोनी का शांत शरीर दो गज कफ़न में लिपटा बार बार किसना के मन् को कचोटे जा रहा था .

“सरदारनी बोली थी ,तेरी बच्ची ……कैलासो …. ” भर्राए गले से ये शब्द बोल कैलासो सलोनी के शरीर के पास बेहोश हो कर गिर गयी .

******************************************
26 साल पहले :

किसना से शादी करना उसकी ज़िन्दगी का सबसे बड़ा सपना था और सबसे बड़ा कड़वा सच भी. कैलासो की माँ ने समझाया था की गोरी शक्ल पर न जा, किसी काम का नहीं लड़का.पर धुन सवार थी प्यार की, तो करली शादी. पर शादी के एक महीने में ही कैलासो को समझ में आ गया की उसने ज़िन्दगी का सबसे बड़ा जुआ हार दिया है . किसना की सरकारी नौकरी थी पर संगत खराब. मर्ज़ी हो तो काम पे जाता था ,नहीं तो घर पर बैठा रहता .शादी के ६ सालो में ४ बेटो की माँ बन गयी कैलासो . रेलवे लाइन के बगल की झोपड़ पट्टी में एक पक्की झोपडी थी जिसका सहारा था ,वही रह कर कैलासो घरो में काम करके अपने बच्चो का गुजर करने लगी और साथ में किसना का भी.

***********
१८ साल पहले :

छोटा बेटा होने के बाद कैलासो ने घर घर जा कर झाडू कटके का काम फिर से पकड़ लिया ,कुछ घरो में कपडे धोती तो कुछ में नवजात शिशु की मालिश करती.पांच साल ही किसना को नौकरी से निकाल दिया गया था ,हरकते ही ऐसी थी उसकी .दारु की लत अच्छे अच्छो को निकम्मा बना देती है,तो किसना तो पहले से ही पूरा सूरा था .

घर वैसे तो सब अच्छे थे पर गुरूद्वारे के पास वाली सरदारनी कैलासो से बहुत स्नेह रखती थी .अपना कोई बच्चा नहीं था और अच्छे ज़मीन पैसे वाले थे सरदार सरदारनी .वक़्त बेवक्त पर कैलासो की मदद कर देते ,उसका दुःख बुजुर्ग दम्पत्तो से छुपा नहीं था .और कैलासो के बच्चे अपने आंगन में खेलते दोनों को भाते थे .कैलासो का आँठवा महीना चल रहा था .”मर्जानिये ,बस कर हुन ,नई ते मर जाऊगी “सरदारनी उसे प्यार से झिड़कती .छे साल में चार बच्चे और पांचवा आता हुआ , जच्चा बन बन कर कैलासो की जान आधी हुई पड़ी थी . खिसिया के कैलासो कहती ” बेबे जी , इनको लड़की की आस है ,बस एक हो जाए,फिर जैसा आप कहते हो वैसा आप्रेसन करवा लूंगी “.

*

सन्न चौरासी का दौर था ,बाज़ार गर्म हुआ की महिला प्रधान मंत्री की हत्या उनके अंग रक्षक ने कर दी है .दंगाईयों को कोई दींन ईमान तो होता नहीं है, लूट पाट ,जोर जबरदस्ती ही उनका धर्म है .देखते देखते दंगो ने आग पकड़ ली.बदले के नाम पे मासूम परिवारों का कत्ले आम ,लूट पाट शुरू हो गया .सड़क पे निकलना दूभर था ,जो इंसान था उसका दिल पसीज उठता और हैवान के लिए तमाशा चारो और था .

किसना रोज़ देखता की बस्ती में कोई न कोई पडोसी रोज़ लूट का सामान ला कर अपना घर भर रहा है .कोई टी वी ,कोई फ्रीज ,कोई कपडे, सामान सब को जो मिला वो ले आता .इंसानियत मर गयी थी शायद .

लालच इंसान को शैतान बना देती है .एक रात किसना बोला “कलिआसो, चल तेरी सरदारनी के घर चलते है ,बहुत माल होगा ‘.कैलासो बोली “शर्म करो विनोद के बापू ,सरदारनी ने कितना भला किया है हमारा “. किसना पसीजता हुआ बोला “अरे, वो अमीर लोग हैं, कब के छुप कर बाग़ गए होंगे ,अगर हम ;नहीं जायेंगे तो कोई और उनका घर लूट लेगा ,चल न, थोडा सामान लायेंगे बस ज्यादा नहीं ,तेरे पास चाबी है न घर की, चल न “. किसना नमे साम,दाम ,दंड ,भेद सब से काम लिया पर कैलासो नहीं मानी पर जब बात उसके बच्चो पर आई तो बिचारी क्या करती .औरत जात थी ,जाना पड़ा .

दरवाजा खोला तो सन्नाटा था ,कोई बत्ती नहीं जल रही थी. किसना ने साथ में अपने भाईयो को ले लिया था .”देखा,कहा था न मैंने कोई न होगा “किसना बोला .कमरे कमरे जा कर सब भर लिया ,किसना के भाई फर्नीचर, कपडे ढो कर ले गए .कैलासो थक कर बैठी थी की पूजा घर से आवाज़ आई .”बिल्ली होगी ,मैं देखता हुन” कहके किसना आगे बड़ा .

पूजा घर का दरवाजा खोला तो कोने में बैठे सरदार सरदारनी डर के मारे ठिठुर रहे थे. सरदार जी के हाथ में किरपान थी .”अरे. किसना तू है पुत्तर …”कहके सरदार जी ने किरपान रख थी .इससे पहले वो आगे कुछ बोल पाते,किसना के सर पे सवार लालच ने वो कर दिया ,जो बेहद शर्मनाक था .चाकू से पहले वार सरदार जी पर और दूसरा सरदारनी पर कर दिया .शोर सुनकर कैल्लासो भागती हुई आई .सरदारजी कराह रहे थे और सरदारनी आखिरी साँसों पर थी . कैलासो ने झट से सरदारनी का सर गोद में ले लिया और उनके मुंह में अमृत डाला .””कैलासो ,तेरी बच्ची …….”बस ये ही शब्द निकले सरदारनी के मुंह से और वो माया में समा गयी .कैलासो का दिल धक् से रह गया .घर से निकलते ही जुर्म छुपाने को किसना ने उस घर में आग लगा दी .दोनों बुजुर्ग आग में स्वाहा हो गए .

*
कुछ रातो तक किसना को नींद नहीं आई ,लूट पाट के चौथे दिन कैलासो को बच्ची पैदा हुई .बच्ची की ख़ुशी में किसना अपना गुनाह भूल गया पर कैलासो नहीं भूली थी .पति पत्नी कला रिश्ता तो उस पल ख़त्म हो गया था जब सरदारनी मरी थी ,बस माँ बाप रह गए थे . सालो साल सरदारनी सपने में आ आ कर कैलासो के चैन को कटोचती,कैलासो खुद को उसका कुसूरवार मानती थी .

*
१ साल पहले :

लाड प्यार से पाला ,पढाया लिखाया ,फिर बड़े धूम धाम से ,अपनी हैसियत से बड कर शादी की थी किसना ने अपने लाडली सलोनी की .घर में पुराने पर महंगे सामान को देख कर लगा था लड़के वालो को की किसना के पास बहुत पैसा है पर अय्याश कब अमीर ही.लूटे गहेने पैसे किसना कब का उड़ा गया , ३ लड़के भी बाप पर गए थे ,बस चौथा बेटा माँ का घर खर्चे में हाथ बांटता था .

साल भी नहीं हुआ था ,सलोनी के चेहरे की मुस्कान फीकी पड़ने लगनी. माँ बाप के पूछने पर बस फीका सा मुस्कुरा देती .कल रात आये उसके फ़ोन ने झिंझोड़ दिया था किसना को .”पापा पापा मुझे बचा लो नहीं तो मार देंगे ये मुझे “.किसना के पैरो तले से ज़मीन खिसक गयी “क्या हुआ लाडो,जल्दी बता मेरा दिल डूबता है ” ..”पापा ,पापा “,सुबकती हुई सलोनी बोली “ये कहते है की तेरे बाप ने धोका दिया है हमको .इतने पैसा है और हमें कुछ नहीं दिया.मैंने समझाया की मेरे माँ ब्नाप के पास पैसा नहीं है तो बोले घर में इतने महंगा सामान कहाँ से आया ,कहते है अपने बाप से ५० हज़ार ला नहीं तो तुझे जला देंगे ,पापा प्लीस मुझे बचा लो ‘.किसना को सांप सून्ग गया था “घबरा न लाडो,मैं सुबह ही तुझे ले जाऊंगा “….. पर सुबह न हो पायी .रात १ बजे घर के बाहर पुलिस की गाडी आई ,सलोनी की लाश ले कर .गयी रात उसके ससुराल वालो ने गयी रात उसे आग लगा दी ,चीख पुकार सुन कर पडोसियों ने पुलिस को फ़ोन किया पर पुलिस आने से पहले सलोनी पूरी जल चुकी थी.उसके ससुराल वाले अब जेल में थे पर उसका किसना क्या करता ,उसकी सीने की धड़कन अब जा चुकी थी .

******************************

**********
आज :”उठ कैलासो,होश में आ ,मुझे माफ़ करदे .मेरे गुनाहों की सजा मेरी बच्ची को क्यूँ दी भगवान् ने “किसना फूट फूट कर रोने लगा .सरदारनी की हाय लग गयी ………….

कुछ समय पश्चात जब कैलासो को होश आया तो उसका रुपांतरीकरण हो चुका था। न केवल उसका बदन अपितु उसका हृदय भी सचेत था। इतने वर्षों के शारीरिक एवं मानसिक शोषण, अपने शराबी, लोभी पति की नृशंसता तथा जवान, मासूम बेटी की अकारण, निर्दयी मृत्यु ने उसके तन – मन की बरसों पुरानी शिथिलता व दुर्बलता को एक ही झटके में झिंझोड कर निकाल दिया।

गत कयी महीनों से बस्ती में गैर सरकारी संस्थायें दंगा पीड़ितों व महिलाओं के उत्थान हेतु प्रचार कर रहीं थीं। वह उठी और किसना को अनदेखा करते हुए, दृढता से अपनी झोंपड़ी की ओर बढ़ गयी जहां उसने वह प्रचार – पत्रिका सहेज कर रखी थी जिस में उन संस्थाओं के फ़ोन नंबर थे। एक समाज सेविका से तो उसकी कुछ मित्रता भी हो गयी थी। अपने आंचल की गाँठ खोल, उसने कुछ सिक्के निकाले और स्थिर कदमों से बाजू वाले PCO की ओर बढ़ गयी। निडर, आश्वस्त हाथों से उसने नंबर मिलाया। घंटी जा रही थी।

“राम राम दीदी। मैं कैलासो। आप से मुलाकात चाह रही थी जी”

“अरे तो अभी आ जा। बहुत काम करना है”

“जी बस अभी आयी”

फ़ोन रख, निश्चयात्मक चाल से वह बस्ती के बाहर निकल गयी। उसके जीवन और मन के एकाकीपन व निर्बलता की जगह एक सशक्त उद्देश्य ने ले ली थी।

ऊपर वाले की लाठी बेज़ुबान सही, पर बजती अवश्य है। किसना चाह कर भी कैलासो को आवाज़ नहीं दे पाया। कैलासो धीरे, धीरे, सबल कदमों से चलती उसकी नज़रों से ओझल हो गयी, बिना उस से कुछ कहे, बिना किसी आरोप या क्षमा के।

किसना जानता था कि अब उसे जीवन पर्यंत कभी न भरने वाले अपूर्ण पश्चाताप से रिसते हुए घाव के साथ जीना है। उसने सलोनी के मृत शरीर की ओर देखा और उसके हृदय से निकली दारूण चीत्कार उसके शून्य, अंधकारमय अंतस में गूँज कर रह गयी जिसे सुनने वाला अब कोई न था।

*

***************************************************************************************
सन्न चौरासी का दौर था ,बाज़ार गर्म हुआ की महिला प्रधान मंत्री की हत्या उनके अंग रक्षक ने कर दी है .दंगाईयों को कोई दींन ईमान तो होता नहीं है, लूट पाट ,जोर जबरदस्ती ही उनका धर्म है .देखते देखते दंगो ने आग पकड़ ली.बदले के नाम पे मासूम परिवारों का कत्ले आम ,लूट पाट शुरू हो गया .सड़क पे निकलना दूभर था ,जो इंसान था उसका दिल पसीज उठता और हैवान के लिए तमाशा चारो और था
कहानी में प्रकाशित किया गया | Tagged , , , , , , , , , , | 15 टिप्पणियां

वंश वृद्धि

“किस तरह की माँ है ये ?” अखबार को टेबल पर रखते ही मेरे मुँह से आह निकली .

नारी जननी से भक्षक कैसे बन सकती है? मेरे मन को ये सवाल लगातार कचोट रहा था।
“क्या हुआ बहु जी , क्यों परेशान हो रही हो ?” कमरे मे झाड़ू लगाती मेरी मेहरी उषा ने पूछा ।
उषा और उसकी पन्द्रह साल की बेटी पूजा हमारे यहाँ झाड़ू कटके का काम करती है। २ बेटे और ४ बेटियों की माँ उषा हमारे यहाँ कई सालो से है. बेटे निकम्मेऔर पति शराबी ,इसलिये उसकी लड़कियां काम मे उसकी मदद करके घर चलातीं हैं। भूगोल के मैप की तरह उसके चेहरे पर ऊभरती गुम होती आडी टेढी लकीरें उसके बेटो और पति के अत्याचार की कहानी बयाँ कर ही देती हैं। 

“लिखा है, दो हफ्तों में ये दूसरी घटना है कि एक माँ ने अपनी बेटी की पैदा होते ही गला दबा कर मार दिया। क्या एक लड़की की माँ होना हमारे समाज में इतना बड़ा अभिशाप है? “ मैं अपने सात महीने के कोख पर हाथ रखते हमारी बातों से अनजान गुड्डा गुड्डी का खेल खेलती प्रिया को देखते बोली।

“नही नहीं बहु जी, उस बिचारी की कोई मज़बूरी रही होगी।अपना जना कोई क्यों मरेगा भला, अभागी लड़की ही बेशक जनि हो . वैसे सच कहूँ, एक लड़का होना भी तो ज़रूरी है . मैं तो कहती हूँ भगवन तुम्हे भी इस बार लड़का ही दे, पिछले बार लड़की हो गयी सो हुई . वंश को भी तो आगे बढाना है ।” उषा का जवाब था.

मैं निशब्द थी और हैरान भी। हमारे देश मे रुढिवादिता ने ऐसा डेरा डाला है कि एक औरत ही औरत होने का महत्त्व नहीं समझती। क्या ये समय कभी बदलेगा ???

कहानी में प्रकाशित किया गया | 5 टिप्पणियां

पलाश के फूल

पतझड़ बसंत के मौसम में,
आसाँ नहीं पलाश फूल होना.

पल में आस्मां का सितारा,

पल में ज़मीं में धूल होना.

पत्तों को अलविदा कहते

शाखों का ठूँठ का होना !

बरस हर बरस बहार बन,

पाइयों तले मसल मरना।

गुलिस्ताँ का काँटों का होना,

आसाँ नहीं पलाश फूल होना!
गुलिस्ताँ का हो, उसका न होना,
आसाँ नहीं पलाश फूल होना!

~गायत्री 
२१०३२०१८

#WorldPoetryDay

कविता में प्रकाशित किया गया | टिप्पणी करे

अहम् 


मर गया तो मै नहीं, फ़िर मै का अस्तित्व क्या,

तस्वीरों की गुफ़्तगू से बस दीवारें ही सजती हैं!

कविता में प्रकाशित किया गया | टिप्पणी करे

नया साल?

 

बरसों से साल की शुरुवात एक कविता लिख कर करती हूँ. पिछले नए साल पर ये लिखा था, पर जवाब मिले नहीं अभी तक. सवाल बन कुछ इस तरह ज़हन में अटके पड़े हैं :

क्या फिर वही होंगे दिन ,वोही होंगी रात ?
कुछ कच्चे बे-लम्स या होंगे गहरे जज़्बात ?

क्या हैरान कर पायेगा ज़माना किसी रोज़ ?
या चैन लेकर जाएगा करके कभी मदहोश ?

फिर दिल टूटेंगे तो क्या होगा बेहद मलाल ?
चलो फिर भी मुबारक हो तुम्हें नया साल.

एक हर्फ़ एक सिफर से एक ऊपर बुनकर ,
एक पुराना तन पहने नया उजला लिबास.

*
 
 फिर कुछ दिन पहले पढ़ा था , फैज़ अहमद फैज़ क्या कह कर गए हैं नए साल के लिए  :
 

ऐ नये साल बता, तुझ में नयापन क्या है?
हर तरफ ख़ल्क ने क्यों शोर मचा रखा है?

रौशनी दिन की वही, तारों भरी रात वही,
आज हमको नज़र आती है हर बात वही।

आसमां बदला है अफसोस, ना बदली है जमीं,
एक हिन्दसे का बदलना कोई जिद्दत तो नहीं।

अगले बरसों की तरह होंगे करीने तेरे,
किसे मालूम नहीं बारह महीने तेरे।

जनवरी, फरवरी और मार्च में पड़ेगी सर्दी,
और अप्रैल, मई, जून में होवेगी गर्मी।

तेरे मान-दहार में कुछ खोएगा कुछ पाएगा,
अपनी मय्यत बसर करके चला जाएगा।

तू नया है तो दिखा सुबह नयी, शाम नई,
वरना इन आंखों ने देखे हैं नए साल कई।

बेसबब देते हैं क्यों लोग मुबारक बादें,
गालिबन भूल गए वक्त की कडवी यादें।

तेरी आमद से घटी उमर जहां में सभी की,
‘फैज’ नयी लिखी है यह नज्म निराले ढब की।


*

 और मिर्ज़ा ग़ालिब बेशक कह गए थे  :

बाजीचा ऐ इ त्फाल है दुनिया मेरे आगे
होता है शब-ओ -रोज़ तमाशा मेरे आगे।

*

पर ये तमाशा देख जो हूक उठती है , उसका क्या करें ?

तमाशा :

फिर वही शोर उठेगा ,फिर वही तमाशा होगा, 

फिर वही आग लगेगी, फिर वही  धुआं होगा ।

क्या होगा ?  क्या होगा ?

शोर था, ठहर जाएगा, घाव था, भर  जाएगा 

पर,

जो मवाद घुल गया है , हवाओं में, शहर दर शहर ,

दौड़ रहा है खौलते ख़ून में ,नफरत से लिपट कर। 

घुट रही हैं सांसें जिसकी ,सियासती गिरफ्त  में  ,

वो बेकस आदमी, बौराई भीड़ में खोया , उलझा, 

किधर जाएगा, किधर जाएगा, किधर जाएगा ?

***

चलो फिर भी मुबारक नया साल.

कविता में प्रकाशित किया गया | Tagged , , , , , | टिप्पणी करे

स्वतंत्रता दिवस -एक लघु कथा

दीपू आज बहुत खुश था .इतना खुश कि ख़ुशी के मारे पूरी रात आँखों ही आँखों में काटी थी, बस कब सुबह हो और उसका ख्वाब पूरा हो!
कल १५ अगस्त जो है . बापू ने उसे वादा किया था कि सुबह उसे स्वंतंत्रता दिवस पर प्रधान मंत्री का भाषण सुनाने लाल किला ले कर जायेंगे।
यूँ तो दिल्ली आये दीपू और उसके बापू को छह महीने हो चले थे पर अभी तक वो दीपू को कहीं घुमाने नहीं ले जा पाया था । फैक्ट्री में सातों दिन काम होता था और बंसिया १२घंटे की शिफ्ट कर रोज़ थके हारे देर रात घर आता था। कल उसकी फैक्ट्री बंद होगी । १५ अगस्त जो है, आज़ादी का दिन।
बिन माँ का आठ साल का दीपू दिल्ली के जहाँगीर पुरी इलाके में एक छोटे सी किराए की झोपडी में अपने पिता बंसिया के साथ रहता था .दीपू मेधावी छात्र था और फैक्ट्री मालिक की कृपा से उसे वही नगर निगम के विद्यालय में चौथी कक्षा में दाखिला मिल गया था . दीपू को शहर अच्छा लगता था .गाँव में तो बड़े लोग उसकी बिरादरी के लोगों को न मंदिर जाने देते ,न कुंए से पानी लेने देते पर यहाँ अलग था .किसी को किसी की जात की परवाह नहीं थी।
दीपू की अपार ख़ुशी का एक कारण और भी था -बापू ने बताया था की वे उसे मेट्रो गाडी से चांदनी चौक ले कर जायेंगे. अपनी झोपडी से सड़क की तरफ भाग भाग कर कितनी बार चम चम करती चमकीली मेट्रो गाडी को हवा में उड़ते जैसे देखा था .मन करता कि जा कर बैठ जाऊं पर खाली जेब और गरीबी रोक देती ।
पर बापू को ओवर टाईम का पैसा मिला था और कल सुबह वो मेट्रो में सवार हो कर हवा से बातें करेगें .अनेक ख्वाब बुनते बुनते आँखों में कट गयी और पौ फटते ही बंसिया ने दीपू को उठा कर बिठा दिया ।
“सुबह हो गयीं है राजा बहिया ,देर न करिबे तैयार होन्ह में , ७ बजे के बाद गाडी न मिलेहु आज बबुआ,१५ अगस्त जो है “।
दीपू फटाफट तैयार हो कर बंसिया के साथ स्टेशन की और चल पड़ा .कदमो में पर लगे थे और चाल हवा से बातें कर रही थी।
“धीरे चले रे बबुआ ,हमर सांस रुक्वत है “.कोयले के कारखाने में काम कर के बंसिया को सांस की तकलीफ हो चली थी पर अपनी गरीबी और मजबूरी कभी दीपू पर नहीं ज़ाहिर की थी उसने।
खुद कैसे भी पुराना फटा कपडा पहनता पर दीपू के कपडे किताबों का बहुत ख्याल रखता .दीपू भी समझदार बच्चा था ,कभी पिता से कुछ नहीं माँगा. उसका सपना था – बड़ा हो कर बहुत पैसे कमाए और अपने पिता को आराम और इज्ज़त की ज़िंदगी दे ।
दीपू के लिए सब नया नया था .मेट्रो स्टेशन इतना सुन्दर था ,इतना विशाल और सुबह-सुबह ही कितने लोग थे वहां पर. पिताजी ने टोकन लिया और दीपू एक मशीन पर सिक्का दिखा कर स्टेशन में प्रवेश किया।
“अरे ,वो क्या ,खुद चलने वाली सीढ़ी बापू!”  .दीपू हैरान था पर सबको उस सीढी पर चढ़ता देख कर वो भी बंसिया का हाथ थामें प्लैटफार्म तक पहुँच गया ।
मैट्रो का डब्बा सपने जैसा था ,चमकती सीटें, खुद खुलते बंद होते दरवाज़े और ठंडी ठंडी हवा ..मेट्रो उस रेल गाड़ी से कितनी अलग थी जिस पर भीड़ में जर्नल डब्बे की सीढ़ी  पर लटकते हुए वो डरते डरते गाँव से शहर बिना टिकेट आये थे।
दिल्ली शहर दीपू को और भी भा गया ।
लाल किला पर बहुत भीड़ थी, पर पिताजी ने कंधे पर बिठा कर प्रधान मंत्री का भाषण उसको दिखा दिया था .बहुत मज़ा आया दीपू को .प्रधान मंत्री ने कितनी अच्छी बातें बोली थी . आज़ादी के सही मायने, सबका विकास, सबका सम्मान. जात पात, धर्म भेद से आज़ादी। नन्हे दीपू को प्रधानमंत्री की कही सारी बातें समझ नहीं आयी थी पर उसने खूब ज़ोर ज़ोर से तालियाँ बजाई।
प्रधानमंत्री के भाषण के बात पिताजी ने दीपू को चांदनी चौक घुमाया, दिगंबर मंदिर और शीशगंज गुरद्वारे में दर्शन कराये और ढेर सारी चाट खिलायी।
अब समय था वापस घर जाने का .ट्रेन चूँकि कुछ घंटो बाद फिर से चली थी इस वजह से स्टेशन पर बहुत भीड़ थी .टोकन ले कर लम्बी लाइन में दोनों बाप बेटे ने स्टेशन में प्रवेश किया .स्टेशन पर मेट्रो में जाने के लिए लम्बी कतारें थी .दीपू ने कस के बंसिया का हाथ थाम लिया .
१५ – २० मिनट के बाद बहुत धक्का मुक्की के रेले में बहते हुए दोनों किसी तरह से मेट्रो में घडब्बे में घुस पाए थे .बहुत भीड़ थी और दीपू बंसिया का हाथ कस से पकडे़ दरवाज़े के पास किसी तरह खडा हो गया।
२-३ स्टेशन निकले थे की अचानक से एक शोर उठा ,”चोर, चोर ,पकडो, मेरा पर्स चोरी हो गया “.जहाँगीर पुरी स्टेशन आ गया था और एक लंबा मोटा आदमी बंसिया का हाथ पकडे चिल्लाने लगा । लोगो ने अचानक ही बंसिया को प्लैटफार्म पर घसीट कर मारना शुरू कर दिया।
दीपू को कुछ समझ नहीं आ रहा था .वो दौड़ कर भीड़ में घुस गया, ” छोड़ दो मेरे बापू को, बिना टिकट नहीं सफर कर रहे हैं। हमारे पास टिकेट है, देखो, मोल दे कर खरीदा है “।
तभी उसने देखा वो मोटा आदमी चिल्ला रहा था, ” सुबह ही ऐ.टी.एम् से पचीस हज़ार निकाले थे ,इस कंजर से मेरा पर्स चुरा लिया ।”
बंसिया गिड़गिड़ाता रहा,”हम नहीं चुराब, कछु बही ,साहिब हम नहीं चुराब “. लोगों को तलाशी में कुछ नहीं मिला।
“अपने किसी साथी को दे दिया होगा,ये सारे गरीब ऐसे होते है, चोर “.वो आदमी चिल्लाया .”कौन सी कौम का है पूछो तो!” पान चबाते एक तिलकधारी ने माँग की।
बहुत आवाजे मिल गयी उस एक आवाज़ में -“जी हां,ये गरीब होते ही ऐसे है, चोर साले”।
और दीपू को अचानक एहसास हुआ कि शहर में भी सबसे बड़ा जुर्म है गरीब होना !
मेट्रो सिक्यूरिटी ने बाहिर जाने वाले सब लोगो की तलाशी शुरू कर दी थी और आखिर एक लड़के को उपर स्टेशन पर लाये।
 “आपका पर्स इस साहबजादे के पास मिला है, शक्ल हुलिए से गरीब तो नहीं लगता ” सिक्यूरिटी वाला व्यंगात्मक तरीके से बोला ।
चोर को देख कर आदमी का चहरा फक्क रह गया . “साहिल,तू !”
 लड़का आदमी के पांव पे गिर गया “पापा, मुझे माफ़ कर दो ,प्लीस पापा ,आपने गोआ जाने के लिए पैसे देने से मना कर दिया था ,इसलिये मैंने …ये…पापा ,प्लीस मुझे पुलिस से बचा लो “.
भीड़ छंटनी शुरू हो गयी थी.
“छी,इनका अपना बेटा चोर निकला और बिचारे गरीब आदमी को कितना मारा”।
“बिचारा बेक़सूर आदमी! गरीब होना भी गुनाह है हुज़ूर”. लोग आपस में बुदबुदा रहे थे।
दीपू हैरान था ,ये वो लोग थे जो कुछ देर पहले उसके पिता को चोर कह कर मर रहे थे, और अब वही लोग!!
बंसिया प्लैटफार्म पर औंधे मुँह गिरा दर्द से कराह रहा था .मेट्रो वालो ने उसे मरहम पट्टी के लिए उठाया और साथ ले गए .दीपू को लगा जैसे उसका सपना नहीं भ्रम टूट गया था।
बिखलता हुआ यही बोलता रहा,”गाँव वापस चलो बापू, वहां हम जैसे सही, जो है वो है पर यहाँ तो सारे गिरगिट है ,बात बात पर रंग बदलते है .ये शहर अच्छा नहीं बापू ,घर चलो ,वापस गाँव चलो “।
बंसिया करहाता हुआ दीपू का हाथ पकड़ कर धीरे धीरे घर की और चल पड़ा। वापस गाँव जाने की तैयारी करने के लिए !
***********************************
मैं सोचती हूँ क्या यही आज़ादी है?
क्या यही आज़ादी के सही मायने है?
क्या हम सब आज़ादी का सही मतलब जान पाए है या जान पायेंगे?

७० साल बाद आज भी हम सडकों पर,गलियों में ,घरों के अन्दर,बाहर भेद भाव करते है .रंग, रूप, जात पात ,गरीबी ,जातिवाद ,शेत्रवाद के नाम पर मार काट करते है .
अराजकता, भ्रष्टाचार, नफरत की सियासत के चंगुल से क्या कभी हम निकल पायेंगे??

क्या हम अपने आप को रूडढ़िवादिता से मुक्त करा पाएगें??

खैर, जय हिंद!

Happy Independence Day! 

**********************


20110815-170449.jpg

कहानी में प्रकाशित किया गया | Tagged , , , , | 14 टिप्पणियां