तेरे आज और कल के दरमियान,
एक सदी गुज़र गयी एक साल मे.
खोल कर मुट्ठी झान्क कर देख,
पिघला दिल है किस हाल मे.
जिसकी याद मे ठोकरे खायी है,
खुद से खुद का हाल छुपाते,
रुक कर ,मुड के एक बार न देखा,
करके बेहाल गया,उस ख्याल ने।
तेरे आज और कल के दरमियान,
एक सदी गुज़र गयी एक साल मे.
खोल कर मुट्ठी झान्क कर देख,
पिघला दिल है किस हाल मे.
जिसकी याद मे ठोकरे खायी है,
खुद से खुद का हाल छुपाते,
रुक कर ,मुड के एक बार न देखा,
करके बेहाल गया,उस ख्याल ने।
चबाकर थूकी गयी इतनी बार कि महीन हो गयी हूँ।
बीमार की तीमारदारी करते-करते गमगीन हो गयी हूँ!
खून सुर्ख पाक किये इतने कि दागदार हो गया दामन।
थोड़ी- थोड़ी कड़वा हो रही हूँ, शायद नीम हो गयी हूँ !
(अब तुम कहोगे पलट के; नीम- हकीम खतरा-ए-जान !)
(जाग ऐ ज़मीर, अब तो कर ले अपनी असल पहचान !)
पश्याताप – एक लघु कथा
आज :
आंसू थे की किसना की आँखों का दामन तजते नहीं थे ,और कैलासो तो जैसे बुत बन के ज़मीन में जड़ गयी थी . चार बेटो के बाद जन्मी लाडली बेटी सलोनी का शांत शरीर दो गज कफ़न में लिपटा बार बार किसना के मन् को कचोटे जा रहा था .
“सरदारनी बोली थी ,तेरी बच्ची ……कैलासो …. ” भर्राए गले से ये शब्द बोल कैलासो सलोनी के शरीर के पास बेहोश हो कर गिर गयी .
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26 साल पहले :
किसना से शादी करना उसकी ज़िन्दगी का सबसे बड़ा सपना था और सबसे बड़ा कड़वा सच भी. कैलासो की माँ ने समझाया था की गोरी शक्ल पर न जा, किसी काम का नहीं लड़का.पर धुन सवार थी प्यार की, तो करली शादी. पर शादी के एक महीने में ही कैलासो को समझ में आ गया की उसने ज़िन्दगी का सबसे बड़ा जुआ हार दिया है . किसना की सरकारी नौकरी थी पर संगत खराब. मर्ज़ी हो तो काम पे जाता था ,नहीं तो घर पर बैठा रहता .शादी के ६ सालो में ४ बेटो की माँ बन गयी कैलासो . रेलवे लाइन के बगल की झोपड़ पट्टी में एक पक्की झोपडी थी जिसका सहारा था ,वही रह कर कैलासो घरो में काम करके अपने बच्चो का गुजर करने लगी और साथ में किसना का भी.
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१८ साल पहले :
छोटा बेटा होने के बाद कैलासो ने घर घर जा कर झाडू कटके का काम फिर से पकड़ लिया ,कुछ घरो में कपडे धोती तो कुछ में नवजात शिशु की मालिश करती.पांच साल ही किसना को नौकरी से निकाल दिया गया था ,हरकते ही ऐसी थी उसकी .दारु की लत अच्छे अच्छो को निकम्मा बना देती है,तो किसना तो पहले से ही पूरा सूरा था .
घर वैसे तो सब अच्छे थे पर गुरूद्वारे के पास वाली सरदारनी कैलासो से बहुत स्नेह रखती थी .अपना कोई बच्चा नहीं था और अच्छे ज़मीन पैसे वाले थे सरदार सरदारनी .वक़्त बेवक्त पर कैलासो की मदद कर देते ,उसका दुःख बुजुर्ग दम्पत्तो से छुपा नहीं था .और कैलासो के बच्चे अपने आंगन में खेलते दोनों को भाते थे .कैलासो का आँठवा महीना चल रहा था .”मर्जानिये ,बस कर हुन ,नई ते मर जाऊगी “सरदारनी उसे प्यार से झिड़कती .छे साल में चार बच्चे और पांचवा आता हुआ , जच्चा बन बन कर कैलासो की जान आधी हुई पड़ी थी . खिसिया के कैलासो कहती ” बेबे जी , इनको लड़की की आस है ,बस एक हो जाए,फिर जैसा आप कहते हो वैसा आप्रेसन करवा लूंगी “.
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सन्न चौरासी का दौर था ,बाज़ार गर्म हुआ की महिला प्रधान मंत्री की हत्या उनके अंग रक्षक ने कर दी है .दंगाईयों को कोई दींन ईमान तो होता नहीं है, लूट पाट ,जोर जबरदस्ती ही उनका धर्म है .देखते देखते दंगो ने आग पकड़ ली.बदले के नाम पे मासूम परिवारों का कत्ले आम ,लूट पाट शुरू हो गया .सड़क पे निकलना दूभर था ,जो इंसान था उसका दिल पसीज उठता और हैवान के लिए तमाशा चारो और था .
किसना रोज़ देखता की बस्ती में कोई न कोई पडोसी रोज़ लूट का सामान ला कर अपना घर भर रहा है .कोई टी वी ,कोई फ्रीज ,कोई कपडे, सामान सब को जो मिला वो ले आता .इंसानियत मर गयी थी शायद .
लालच इंसान को शैतान बना देती है .एक रात किसना बोला “कलिआसो, चल तेरी सरदारनी के घर चलते है ,बहुत माल होगा ‘.कैलासो बोली “शर्म करो विनोद के बापू ,सरदारनी ने कितना भला किया है हमारा “. किसना पसीजता हुआ बोला “अरे, वो अमीर लोग हैं, कब के छुप कर बाग़ गए होंगे ,अगर हम ;नहीं जायेंगे तो कोई और उनका घर लूट लेगा ,चल न, थोडा सामान लायेंगे बस ज्यादा नहीं ,तेरे पास चाबी है न घर की, चल न “. किसना नमे साम,दाम ,दंड ,भेद सब से काम लिया पर कैलासो नहीं मानी पर जब बात उसके बच्चो पर आई तो बिचारी क्या करती .औरत जात थी ,जाना पड़ा .
दरवाजा खोला तो सन्नाटा था ,कोई बत्ती नहीं जल रही थी. किसना ने साथ में अपने भाईयो को ले लिया था .”देखा,कहा था न मैंने कोई न होगा “किसना बोला .कमरे कमरे जा कर सब भर लिया ,किसना के भाई फर्नीचर, कपडे ढो कर ले गए .कैलासो थक कर बैठी थी की पूजा घर से आवाज़ आई .”बिल्ली होगी ,मैं देखता हुन” कहके किसना आगे बड़ा .
पूजा घर का दरवाजा खोला तो कोने में बैठे सरदार सरदारनी डर के मारे ठिठुर रहे थे. सरदार जी के हाथ में किरपान थी .”अरे. किसना तू है पुत्तर …”कहके सरदार जी ने किरपान रख थी .इससे पहले वो आगे कुछ बोल पाते,किसना के सर पे सवार लालच ने वो कर दिया ,जो बेहद शर्मनाक था .चाकू से पहले वार सरदार जी पर और दूसरा सरदारनी पर कर दिया .शोर सुनकर कैल्लासो भागती हुई आई .सरदारजी कराह रहे थे और सरदारनी आखिरी साँसों पर थी . कैलासो ने झट से सरदारनी का सर गोद में ले लिया और उनके मुंह में अमृत डाला .””कैलासो ,तेरी बच्ची …….”बस ये ही शब्द निकले सरदारनी के मुंह से और वो माया में समा गयी .कैलासो का दिल धक् से रह गया .घर से निकलते ही जुर्म छुपाने को किसना ने उस घर में आग लगा दी .दोनों बुजुर्ग आग में स्वाहा हो गए .
*
कुछ रातो तक किसना को नींद नहीं आई ,लूट पाट के चौथे दिन कैलासो को बच्ची पैदा हुई .बच्ची की ख़ुशी में किसना अपना गुनाह भूल गया पर कैलासो नहीं भूली थी .पति पत्नी कला रिश्ता तो उस पल ख़त्म हो गया था जब सरदारनी मरी थी ,बस माँ बाप रह गए थे . सालो साल सरदारनी सपने में आ आ कर कैलासो के चैन को कटोचती,कैलासो खुद को उसका कुसूरवार मानती थी .
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१ साल पहले :
लाड प्यार से पाला ,पढाया लिखाया ,फिर बड़े धूम धाम से ,अपनी हैसियत से बड कर शादी की थी किसना ने अपने लाडली सलोनी की .घर में पुराने पर महंगे सामान को देख कर लगा था लड़के वालो को की किसना के पास बहुत पैसा है पर अय्याश कब अमीर ही.लूटे गहेने पैसे किसना कब का उड़ा गया , ३ लड़के भी बाप पर गए थे ,बस चौथा बेटा माँ का घर खर्चे में हाथ बांटता था .
साल भी नहीं हुआ था ,सलोनी के चेहरे की मुस्कान फीकी पड़ने लगनी. माँ बाप के पूछने पर बस फीका सा मुस्कुरा देती .कल रात आये उसके फ़ोन ने झिंझोड़ दिया था किसना को .”पापा पापा मुझे बचा लो नहीं तो मार देंगे ये मुझे “.किसना के पैरो तले से ज़मीन खिसक गयी “क्या हुआ लाडो,जल्दी बता मेरा दिल डूबता है ” ..”पापा ,पापा “,सुबकती हुई सलोनी बोली “ये कहते है की तेरे बाप ने धोका दिया है हमको .इतने पैसा है और हमें कुछ नहीं दिया.मैंने समझाया की मेरे माँ ब्नाप के पास पैसा नहीं है तो बोले घर में इतने महंगा सामान कहाँ से आया ,कहते है अपने बाप से ५० हज़ार ला नहीं तो तुझे जला देंगे ,पापा प्लीस मुझे बचा लो ‘.किसना को सांप सून्ग गया था “घबरा न लाडो,मैं सुबह ही तुझे ले जाऊंगा “….. पर सुबह न हो पायी .रात १ बजे घर के बाहर पुलिस की गाडी आई ,सलोनी की लाश ले कर .गयी रात उसके ससुराल वालो ने गयी रात उसे आग लगा दी ,चीख पुकार सुन कर पडोसियों ने पुलिस को फ़ोन किया पर पुलिस आने से पहले सलोनी पूरी जल चुकी थी.उसके ससुराल वाले अब जेल में थे पर उसका किसना क्या करता ,उसकी सीने की धड़कन अब जा चुकी थी .
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कुछ समय पश्चात जब कैलासो को होश आया तो उसका रुपांतरीकरण हो चुका था। न केवल उसका बदन अपितु उसका हृदय भी सचेत था। इतने वर्षों के शारीरिक एवं मानसिक शोषण, अपने शराबी, लोभी पति की नृशंसता तथा जवान, मासूम बेटी की अकारण, निर्दयी मृत्यु ने उसके तन – मन की बरसों पुरानी शिथिलता व दुर्बलता को एक ही झटके में झिंझोड कर निकाल दिया।
गत कयी महीनों से बस्ती में गैर सरकारी संस्थायें दंगा पीड़ितों व महिलाओं के उत्थान हेतु प्रचार कर रहीं थीं। वह उठी और किसना को अनदेखा करते हुए, दृढता से अपनी झोंपड़ी की ओर बढ़ गयी जहां उसने वह प्रचार – पत्रिका सहेज कर रखी थी जिस में उन संस्थाओं के फ़ोन नंबर थे। एक समाज सेविका से तो उसकी कुछ मित्रता भी हो गयी थी। अपने आंचल की गाँठ खोल, उसने कुछ सिक्के निकाले और स्थिर कदमों से बाजू वाले PCO की ओर बढ़ गयी। निडर, आश्वस्त हाथों से उसने नंबर मिलाया। घंटी जा रही थी।
“राम राम दीदी। मैं कैलासो। आप से मुलाकात चाह रही थी जी”
“अरे तो अभी आ जा। बहुत काम करना है”
“जी बस अभी आयी”
फ़ोन रख, निश्चयात्मक चाल से वह बस्ती के बाहर निकल गयी। उसके जीवन और मन के एकाकीपन व निर्बलता की जगह एक सशक्त उद्देश्य ने ले ली थी।
ऊपर वाले की लाठी बेज़ुबान सही, पर बजती अवश्य है। किसना चाह कर भी कैलासो को आवाज़ नहीं दे पाया। कैलासो धीरे, धीरे, सबल कदमों से चलती उसकी नज़रों से ओझल हो गयी, बिना उस से कुछ कहे, बिना किसी आरोप या क्षमा के।
किसना जानता था कि अब उसे जीवन पर्यंत कभी न भरने वाले अपूर्ण पश्चाताप से रिसते हुए घाव के साथ जीना है। उसने सलोनी के मृत शरीर की ओर देखा और उसके हृदय से निकली दारूण चीत्कार उसके शून्य, अंधकारमय अंतस में गूँज कर रह गयी जिसे सुनने वाला अब कोई न था।
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“किस तरह की माँ है ये ?” अखबार को टेबल पर रखते ही मेरे मुँह से आह निकली .
नारी जननी से भक्षक कैसे बन सकती है? मेरे मन को ये सवाल लगातार कचोट रहा था।
“क्या हुआ बहु जी , क्यों परेशान हो रही हो ?” कमरे मे झाड़ू लगाती मेरी मेहरी उषा ने पूछा ।
उषा और उसकी पन्द्रह साल की बेटी पूजा हमारे यहाँ झाड़ू कटके का काम करती है। २ बेटे और ४ बेटियों की माँ उषा हमारे यहाँ कई सालो से है. बेटे निकम्मेऔर पति शराबी ,इसलिये उसकी लड़कियां काम मे उसकी मदद करके घर चलातीं हैं। भूगोल के मैप की तरह उसके चेहरे पर ऊभरती गुम होती आडी टेढी लकीरें उसके बेटो और पति के अत्याचार की कहानी बयाँ कर ही देती हैं।
“लिखा है, दो हफ्तों में ये दूसरी घटना है कि एक माँ ने अपनी बेटी की पैदा होते ही गला दबा कर मार दिया। क्या एक लड़की की माँ होना हमारे समाज में इतना बड़ा अभिशाप है? “ मैं अपने सात महीने के कोख पर हाथ रखते हमारी बातों से अनजान गुड्डा गुड्डी का खेल खेलती प्रिया को देखते बोली।
“नही नहीं बहु जी, उस बिचारी की कोई मज़बूरी रही होगी।अपना जना कोई क्यों मरेगा भला, अभागी लड़की ही बेशक जनि हो . वैसे सच कहूँ, एक लड़का होना भी तो ज़रूरी है . मैं तो कहती हूँ भगवन तुम्हे भी इस बार लड़का ही दे, पिछले बार लड़की हो गयी सो हुई . वंश को भी तो आगे बढाना है ।” उषा का जवाब था.
मैं निशब्द थी और हैरान भी। हमारे देश मे रुढिवादिता ने ऐसा डेरा डाला है कि एक औरत ही औरत होने का महत्त्व नहीं समझती। क्या ये समय कभी बदलेगा ???
पतझड़ बसंत के मौसम में,
आसाँ नहीं पलाश फूल होना.
पल में आस्मां का सितारा,
पल में ज़मीं में धूल होना.
पत्तों को अलविदा कहते
शाखों का ठूँठ का होना !
बरस हर बरस बहार बन,
पाइयों तले मसल मरना।
गुलिस्ताँ का काँटों का होना,
आसाँ नहीं पलाश फूल होना!
गुलिस्ताँ का हो, उसका न होना,
आसाँ नहीं पलाश फूल होना!
~गायत्री
२१०३२०१८
#WorldPoetryDay
बरसों से साल की शुरुवात एक कविता लिख कर करती हूँ. पिछले नए साल पर ये लिखा था, पर जवाब मिले नहीं अभी तक. सवाल बन कुछ इस तरह ज़हन में अटके पड़े हैं :
क्या फिर वही होंगे दिन ,वोही होंगी रात ?
कुछ कच्चे बे-लम्स या होंगे गहरे जज़्बात ?
क्या हैरान कर पायेगा ज़माना किसी रोज़ ?
या चैन लेकर जाएगा करके कभी मदहोश ?
फिर दिल टूटेंगे तो क्या होगा बेहद मलाल ?
चलो फिर भी मुबारक हो तुम्हें नया साल.
एक हर्फ़ एक सिफर से एक ऊपर बुनकर ,
एक पुराना तन पहने नया उजला लिबास.
ऐ नये साल बता, तुझ में नयापन क्या है?
हर तरफ ख़ल्क ने क्यों शोर मचा रखा है?
रौशनी दिन की वही, तारों भरी रात वही,
आज हमको नज़र आती है हर बात वही।
आसमां बदला है अफसोस, ना बदली है जमीं,
एक हिन्दसे का बदलना कोई जिद्दत तो नहीं।
अगले बरसों की तरह होंगे करीने तेरे,
किसे मालूम नहीं बारह महीने तेरे।
जनवरी, फरवरी और मार्च में पड़ेगी सर्दी,
और अप्रैल, मई, जून में होवेगी गर्मी।
तेरे मान-दहार में कुछ खोएगा कुछ पाएगा,
अपनी मय्यत बसर करके चला जाएगा।
तू नया है तो दिखा सुबह नयी, शाम नई,
वरना इन आंखों ने देखे हैं नए साल कई।
बेसबब देते हैं क्यों लोग मुबारक बादें,
गालिबन भूल गए वक्त की कडवी यादें।
तेरी आमद से घटी उमर जहां में सभी की,
‘फैज’ नयी लिखी है यह नज्म निराले ढब की।
*
और मिर्ज़ा ग़ालिब बेशक कह गए थे :
बाजीचा ऐ इ त्फाल है दुनिया मेरे आगे
होता है शब-ओ -रोज़ तमाशा मेरे आगे।
*
पर ये तमाशा देख जो हूक उठती है , उसका क्या करें ?
तमाशा :
फिर वही शोर उठेगा ,फिर वही तमाशा होगा,
फिर वही आग लगेगी, फिर वही धुआं होगा ।
क्या होगा ? क्या होगा ?
शोर था, ठहर जाएगा, घाव था, भर जाएगा
पर,
जो मवाद घुल गया है , हवाओं में, शहर दर शहर ,
दौड़ रहा है खौलते ख़ून में ,नफरत से लिपट कर।
घुट रही हैं सांसें जिसकी ,सियासती गिरफ्त में ,
वो बेकस आदमी, बौराई भीड़ में खोया , उलझा,
किधर जाएगा, किधर जाएगा, किधर जाएगा ?
***
चलो फिर भी मुबारक नया साल.
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